OMERTA REVIEW
Source : Santabanta.com
कुछ यूं कि मुझे लगा OMERTA जो कि ओमार शेख नाम के आतंकवादी की कहानी बयां करती है, यह फ़िल्म आतंकवाद का रुमानिकरण ( Romanticised ) करती है. जिस तरह फ़िल्म हैदर में आतंकवाद के उपजने का कारण बताया गया, शायद उसी तरह इमोशनल ड्रामे का छाता खोल यह फ़िल्म भी आतंकवाद को सहारा देगी. कुछ सिस्टम की गलतियां और कुछ मजबूरियों वाला राग गाते हुए आतंकवाद का पक्ष न सही , मगर महीन सी उस आतंकवादी के प्रति संवेदना जता जाएगी । क्या सही है क्या गलत मैं इस पक्ष में नही और ना उतना ज्ञान की मै उस काबिल हूँ मगर इतना समझ है कि हर एक्शन का एक रिएक्शन होता है मगर उससे यह कतई जायज़ नही है इंसाफ के लिए हिंसा के रास्ते पर चला जाये और हथियार उठाकर जंग का ऐलान कर दे, ऐसी जंग का जिसमे सिर्फ नाइंसाफी होती है तो आम इंसान के साथ. जो सत्ताधारियों और कट्टरपंथियों के बीच हमेशा से ही पिसता आया है।
( अक्सर हम बाते करते है कि इस दुनिया मे जीत छल कपट - दोखेबाजो और गुंडों की होती है मगर हम में से कितने गुंडे बन गए?...कितने लोग है जो illigal काम करने लग गए )
Sorry To Hansal Mehta...I was Wrong.
शायद इसलिए की जहां मेरी सोच खत्म होती है वहाँ से मेहता साहब की सोच सोचना शुरू करती है। हमनें आज तक फिल्मों में आतंकवाद और आतंकवादी दोनों देखे है; मगर ओमेरता हमें एक ज़िंदगी से रूबरू करवाती है, ओमार शेख की ज़िंदगी से। जो खुद को अल्लाह का बंदा कहता है उसी तरह जिस तरह दुनिया का हर आतंकवादी खुद को आतंकवादी नही समझता.
मगर यह पागलपन है जो किसी भी धर्म के नाम पर हत्याएं करवा देता है, जिसे हम आतंकवाद कहते है और फ़िल्म के मुख्य किरदार ओमार शेख को हम आतंकवादी कहते है।
Source : hindustan times
ओमार शेख लंदन से पढ़ा हुआ , होशियार और धर्म के नाम पर भटका हुआ एक नोजवान है जिसके बाहरी आवरण में जितनी शांति, शालीनता दिखाई देती हुई, उससे कई ज्यादा उसका हैवानी अंदरूनी रूप हमें बखूबी दिखता है जिसके लिए हमें राजकुमार राव की बेहतरीन अदाकारी की प्रशंसा करनी होगी. चलना, उठना, पैर के ऊपर पैर रखकर बैठना, ब्रिटिश एक्सेंट सब बिल्कुल करीब से दिखता है जैसे कि स्क्रीन पर जो इंसान है वो असली ओमार शेख ही है.
फ़िल्म की खासियत यह है कि यब फ़िल्म बिना किसी लाग- लपेट के , बिना किसी रंग रोगन के ओमार शेख की कहानी कहती जाती है और हम दर्शक ओमार शेख से घृणा करते जाते है।
फ़िल्म में गाने नही है मगर जबर बैकग्राउंड म्यूजिक है।
फ़िल्म में वायलेंस नही है मगर वायलेंस के होने का एहसास इस फ़िल्म को वायलेंट बना देता है . ( जैसे अंधरे से ज्यादा उस अंधरे के एहसास से हमें डर लगता है )
फ़िल्म में इमोशन नही है मगर खूब सारी घृणा है जो फ़िल्म को डार्क, कठोर बना देता है.
Zee5 पर आई तो देखने का सौभाग्य हुआ वरना हम टोरेंट वाले तो फ़िल्म को ढूंढ ढूंढ कर परेशान हो गए कि लगा अब तो लद्दाक जाकर ही मिलेगा ( रेंचो ).
वैसे zee5 पर chintu ka birthday भी है , देख डालो दोनों फिल्मों की अवधि मिलाकर भी लगान से कम ही है ।
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