बारिश के मौसम पर लिखी कुछ बेहतरीन कविताएँ
हेलो दोस्तों बारिश का मौसम आ गया. वही मौसम जो पिछले कई महीनों से चुब रही अलाइयों को मिटाने आया है, वही मौसम जो किसान के चेहरे से गम मिटाने आया है, वही मौसम जिसमे नादिया नेहरे चहक उठेगी और सुनाई देगी जल के बहने की मधुर धारा की आवाज़।
इस बारिश के मौसम में गर्म चाय, पकोड़े हो या गर्म कड़ी समोसा, और अगर हो बारिश के मौसम पर लिखी कुछ बेहतरीन कविताएँ तो क्या कहने।
1. पहली कविता पंडित दीनदयाल शर्मा की बारिश का मौसम
बारिश का मौसम है आया ।
हम बच्चों के मन को भाया ।।
'छु' हो गई गरमी सारी ।
मारें हम मिलकर किलकारी ।।
काग़ज़ की हम नाव चलाएँ ।
छप-छप नाचें और नचाएँ ।।
मज़ा आ गया तगड़ा भारी ।
आँखों में आ गई खुमारी ।।
गरम पकौड़ी मिलकर खाएँ ।
चना चबीना खूब चबाएँ ।।
गरम चाय की चुस्की प्यारी ।
मिट गई मन की ख़ुश्की सारी ।।
बारिश का हम लुत्फ़ उठाएँ ।
2. संतोष कुमारी वोहरा की कविता आई बरसात सुहानी
“आयी बरसात सुहानी”
बरसात है ऋतुओं की रानी,
चारों तरफ बरसा है पानी,
लोगों ने है छतरी तानी।।
चारों तरफ बरसा है पानी,
लोगों ने है छतरी तानी।।
नभ में काले बादल छाये,
नाचे मोर पंख फैलाए,
कोयल मीठे गीत सुनाये।।
नाचे मोर पंख फैलाए,
कोयल मीठे गीत सुनाये।।
झूम उठे हैं सब किसान,
सब खाएं मीठे पकवान।
सबका हो इससे कल्याण,
क्या निर्धन क्या धनवान।।
सब खाएं मीठे पकवान।
सबका हो इससे कल्याण,
क्या निर्धन क्या धनवान।।
वर्षा ख़ुशहाली फैलाती है,
कुछ देने का संदेश सुनाती है।
इसे सुने हम इसे गुने हम,
वर्षा जैसा सरस् बनें हम।।
घन गरजत बरसत है मिहरा |
बिजरी चमके डर मोहि लागे, प्यारा लगेरी मिहरा || घन...
दादुर मोर पपिहरा बोले, आम की डाल कोयालियाँ बोले |
पिहू-पिहू सबद सुनो श्रवनन से, मानत ना सखी ये मिहरा || घन...
सोय रही रतियाँ अंधियारी, नींद उडी नैनन ते प्यारी |
मोरे श्याम श्याम ना घर पर, सोयी जगावत ये मिहरा || घन...
कहूँ किसे मन ना सखी लागे, बिरहनि रैनन में नित जागे |
कहे शिवदीन राधिका अेकली, क्यूँ बरसत है ये मिहरा || घन...
आ नंदलाल पार रही हेला, मैं अलबेली तू अलबेला |
आज गगन की सूनी छाती
भावों से भर आई,
चपला के पावों की आहट
आज पवन ने पाई,
डोल रहें हैं बोल न जिनके
मुख में विधि ने डाले
बादल घिर आए, गीत की बेला आई।
बिजली की अलकों ने अंबर
के कंधों को घेरा,
मन बरबस यह पूछ उठा है
कौन, कहाँ पर मेरा?
आज धरणि के आँसू सावन
के मोती बन बहुरे,
घन छाए, मन के मीत की बेला आई।
बादल घिर आए, गीत की बेला आई।
भावों से भर आई,
चपला के पावों की आहट
आज पवन ने पाई,
डोल रहें हैं बोल न जिनके
मुख में विधि ने डाले
बादल घिर आए, गीत की बेला आई।
बिजली की अलकों ने अंबर
के कंधों को घेरा,
मन बरबस यह पूछ उठा है
कौन, कहाँ पर मेरा?
आज धरणि के आँसू सावन
के मोती बन बहुरे,
घन छाए, मन के मीत की बेला आई।
बादल घिर आए, गीत की बेला आई।
SOURCE : कविता कोश
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