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तनु से लेकर कुन्दन और जीरो का बउआ आनंद एल रॉय के किरदार

तनु से लेकर कुन्दन और जीरो का बउआ आनंद एल रॉय के किरदार

 किरदार जो दिल मे उतर जाए 


अल्हड़ , मस्तमौला,खुदगर्ज़ , ज़िद्दी , - यही खासियत है आनंद साहब के दिमागी पिटारे से निकले किरदारों के जिनको बिना ज्यादा साजो- सज्जा से आनंद एल रॉय ने सिनेमा की रेस में उतार दिया और इस कदर ये किरदार लोगो के जेहन में उतरे की आज तक लोगो को याद है वो रांझणा के कुंदन द्वारा बोला गया आखिरी संवाद " अबे कोई तो रोक लो " या फिर कंगना के वो किरदार जो समाज मे लिखे लड़कियों के उसूलो , रिवाजो को तोड़ता है ।।

बाहर से शांत दिखाई पड़ते आनंद साहब के अंदर अवचेतन में उछल कूद विचारो का ही कमाल है जो ऐसे किरदार गढ़े गए.कही पढ़ा था ,"जो बाहर से शांत , चुप होते है अंदर उनका मन कई ज्यादा अटखेलियां मचाता रहता है ". और बेशक ऐसे किरदार उसी दिमाग की उपज हो सकते है ।।

# जैसे फ़िल्म जीरो का "बउआ "

हालिया रिलीज़ हुई "जीरो"में शाहरुख के किरदार बउआ जो बाप के पैसों को ऐसे उड़ाता है जैसे अम्बानी का सुपुत्र हो . कद से छोटा मगर दिल से यूं बड़ा की कही कोई बौना कहे उससे पहले ही उसका मूहँ पैसों से भर दे , ऐसे मस्तमौला , ज़िंदादिल किरदार आनंद एल राय जी ही बुन सकते है जहाँ उनका किरदार मेरठ से मार्स पर पहुँच जाता है ।।
हर सुबह उठ कर सेल्फी लेना , अपने बाप को नाम से पुकारना , और कॉन्फिडेंस ऐसा की भाई भीड़ में नाचना हो या अमेरिका की सड़कों पर कच्छे बनियान में दौड़ जाना उसके किरदार ऐसा जो खुद से ज्यादा किसी और को महत्व नही देता ।।



### किरदार ऐसे जो हौसला दे , हिम्मत दे , खुद से प्यार करना सिखाये 

बाप से परेशान बेटी , ( ओह sorry ) बेटी से परेशान बाप भले ही कितनी ही सज्जनता दिखाए समाज मे ,मगर जब बेटी हाथ से निकल जाए तो मुँह से निकल ही जाता है ,"लो हो गया चुतियापा".
लड़की ग़ुस्साएगी , शर्माएगी , इठलाएगी  , मुस्कुराएगी और अंत मे हसीना मान जाएगी , ऐसे ही किरदार लिखे गए है बॉलीवुड में कही समय से , मगर जब तनु का दबंग किरदार पहली बार सिनेमा में आया तो दर्शको ने उसे भी सिर चढ़ा दिया ,इसलिए तनु वेडस मनु रिटर्न्स आया ।।
बहुत कम देखा है लड़कियों का ऐसा दबंग किरदार जो रेस्टॉरेंट में गिलास फोड़ कर शोर चुप कराता है , जो लोगो को अपने बॉयफ्रेंड से कहकर पिटवाता है , देखा है कभी बॉलीवुड में ऐसा करैक्टर महिलाओं का ।




या कभी देखा है बॉलीवुड में हीरो जो सावला , पतला है , सिलेंडर पहुंचाने के काम करता है , और जो आशिक़ी के चक्कर मे दिल पे गोली खा लेता है , रांझणा के कुंदन जैसी शख्सियत को ही शाश्त्रो में भौकाल कहा गया है ।।




मगर जब भौकाल उस छोटे टिंगणे बम की तरह हो जो दिखाई में छोटा है मगर फिस्फोट तगड़ा करता है . (ZERO)जीरो का बउआ जो कतई कॉन्फिडेंट आदमी है , क्योकि उसने अपनी फेवरेट हेरोइन के साथ दो पल का समय बिताया है , और तो और बउआ फ़िल्म के अंत जो आशिक़ी के चक्कर मे मार्स पहुँच जाता है ,इसके लिए एक ही बात कहनी है कि गुरु तुम भी मारे गए आशिक़ी के चक्कर में ।।

इनके अलावा कई और अल्हड़ किरदार जैसे पप्पी भइया , दत्तो ( जो जादूगरनी की तरह कबूतर दिखाने का टेलेंट रखती है ) ,मनु जो दो बार घोड़ी चढ़ने को तैयार है और राजा अवस्ती जिनको एक भी बार घोड़ी चढ़ने के मौका ही नही मिला , मुरारी जो दोस्ती की नई मिसाल और बिंदिया जो दर्शाती है कि एक लड़का और लड़की कभी दोस्त नही हो सकते ।।



और खास बात zero फ़िल्म की क्योकि कटरीना कैफ को अदाकारी आती है , नही विश्वाश तो यह फ़िल्म देखलो , ज़बर एक्टिंग है ।।

आनंद एल राय के किरदारों की सबसे बड़ी खासियत यही है कि वो खुद से प्यार करना सिखाते , no matter आप कैसे दिखते हो , गोर हो के काले हो , लंबे हो के नाटे हो , अपने आप मे इतना आत्मविश्वाश हो कि दुनिया चाहे कुछ भी कहे हम तो है भईया जबराट जो किसी के बाप नही खाते ।।


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