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भगवान् ज़मीन पर

भगवान् ज़मीन पर

एक रोज भगवान् को ज़मीन पर आना पड़ा
कब तक इंतेजार करते कलयुग का जो आज में आ ही नही रहा था
गलियों को भटकते , रास्तो में डुलते
भगवान् पहुंचे किसी अनजान घर के दरवाजे पर
मंदिरों मस्जिदों से भूखे लोटे भगवान्
क्योकि मूर्तियों को दूध पिला रहता था इंसान

भगवान् की उस वक़्त आस जागी
जब देखा की खुले दरवाजे के पार धुंघट में बंद एक औरत खड़ी
अपनी मेहनत पर भी रोये भगवान्
जब देखा उनकी बनायीं खूबसूरत मूरत
ढकी थी घूँघट में अफ़सोस देख ना पाये भगवान् भी उसकी सूरत

एक निवाला अंत होता है भूख का
और बाकी होते है पेट भरने के लिए
भगवान् को सूझा एक ख्वाब
क्यों ने ली जाए इसकी परीक्षा
जब उन्होंने मांगी दस रोटी की भिक्षा
समय सी गतिमान वो औरत एक मिनट नही रुकी
दे दिया अपने हिस्से के निवाला
और खुद रह गयी भूखी

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