अनुराग कश्यप का नया पैंतरा आज कल टीवी पर खूब दिखाया जा रहा है. जिसका नाम है "मुक्कबाज़". फिल्म में एक डायलॉग भी है की तुमको मुक्कबाज़ बनना है या मुक्केबाज़ ? ,
दरअसल देखने को ये एक समान शब्द है,सिर्फ एक मात्रा भर का फर्क है, मगर यह एक फर्क ही किसी गबरू लौंडे को गलत मात्रा में बिंदु हटा देने पर पर कुछ और बना सकता है. मुक्केबाज़ मतलब प्रोफेशनल बॉक्सर और मुक्कबाज़ मतलब वही छुटपैया गुंडे जो गलियों में अपनी टैलेंट का प्रमाण पत्र लिए घूमते फिरते है और खुद को माइक टाइसन के भतीजे बताते है.
खेर बात यह है की अनुराग कश्यप की जब भी कोई फिल्म आती है तो उसमे कुछ नया यूनिक होता है ,इसमें भी है कहानी अलग बात है ,मगर मुक्केबाज़ में गाने भी बड़े नए से है ,भारत के सबसे सेंसेशनल डीजेवाला बाबू "नुक्लेया " का पैंतरा सांग ने आते ही धमाल मचा दिया मगर साथ ही अब एक नया गाना और आ गया है , आज कल यह गाना बड़ा कानो में गूंज रहा है कारण इसके जबराट से बोल और नावज़ुद्दीन का फिर से इमोशनल अत्याचार गाने वाला लुक , "मुश्किल है अपना मेल प्रिये , यह प्यार नहीं है खेल प्रिये" .
डॉक्टर सुनील जोगी साहब की अलहड़िया कविता जिसको उन्होंने सालो पहले लिखा था ,उसको अनुराग कश्यप ने फिर से दर्शको से रूबरू करवाया है. इस कविता के शब्द भांग में मगन से कुछ इस तरह झलकते है की आप के लौंडेपन से फिर से रुखसत हो जाए.
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम एम ए फ़र्स्ट डिवीज़न हो, मैं हुआ मैट्रिक फेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम फ़ौजी अफ़सर की बेटी, मैं तो किसान का बेटा हूँ,
तुम राबड़ी खीर मलाई हो, मैं तो सत्तू सप्रेटा हूँ,
तुम ए. सी. घर में रहती हो, मैं पेड़ के नीचे लेटा हूँ,
तुम नई मारुति लगती हो, मैं स्कूटेर लंबरेटा हूँ,
इस कदर अगर हम चुप-चुप कर आपस मे प्रेम बढ़ाएँगे,
तो एक रोज़ तेरे डैडी अमरीश पुरी बन जाएँगे,
सब हड्डी पसली तोड़ मुझे भिजवा देंगे वो जेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम अरब देश की घोड़ी हो, मैं हूँ गदहे की नाल प्रिये,
तुम दीवाली का बोनस हो, मैं भूखो की हड़ताल प्रिये,
तुम हीरे जड़ी तश्तरी हो, मैं almuniam का थाल प्रिये,
तुम चिक्केन-सूप बिरयानी हो, मैं कंकड़ वाली दाल प्रिये,
तुम हिरण-चौकरी भरती हो, मैं हूँ कछुए की चाल प्रिये,
तुम चंदन वन की लकड़ी हो, मैं हूँ बबूल की छाल प्रिये,
मैं पके आम सा लटका हूँ, मत मारो मुझे गुलेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
दरअसल देखने को ये एक समान शब्द है,सिर्फ एक मात्रा भर का फर्क है, मगर यह एक फर्क ही किसी गबरू लौंडे को गलत मात्रा में बिंदु हटा देने पर पर कुछ और बना सकता है. मुक्केबाज़ मतलब प्रोफेशनल बॉक्सर और मुक्कबाज़ मतलब वही छुटपैया गुंडे जो गलियों में अपनी टैलेंट का प्रमाण पत्र लिए घूमते फिरते है और खुद को माइक टाइसन के भतीजे बताते है.
खेर बात यह है की अनुराग कश्यप की जब भी कोई फिल्म आती है तो उसमे कुछ नया यूनिक होता है ,इसमें भी है कहानी अलग बात है ,मगर मुक्केबाज़ में गाने भी बड़े नए से है ,भारत के सबसे सेंसेशनल डीजेवाला बाबू "नुक्लेया " का पैंतरा सांग ने आते ही धमाल मचा दिया मगर साथ ही अब एक नया गाना और आ गया है , आज कल यह गाना बड़ा कानो में गूंज रहा है कारण इसके जबराट से बोल और नावज़ुद्दीन का फिर से इमोशनल अत्याचार गाने वाला लुक , "मुश्किल है अपना मेल प्रिये , यह प्यार नहीं है खेल प्रिये" .
डॉक्टर सुनील जोगी साहब की अलहड़िया कविता जिसको उन्होंने सालो पहले लिखा था ,उसको अनुराग कश्यप ने फिर से दर्शको से रूबरू करवाया है. इस कविता के शब्द भांग में मगन से कुछ इस तरह झलकते है की आप के लौंडेपन से फिर से रुखसत हो जाए.
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम एम ए फ़र्स्ट डिवीज़न हो, मैं हुआ मैट्रिक फेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम फ़ौजी अफ़सर की बेटी, मैं तो किसान का बेटा हूँ,
तुम राबड़ी खीर मलाई हो, मैं तो सत्तू सप्रेटा हूँ,
तुम ए. सी. घर में रहती हो, मैं पेड़ के नीचे लेटा हूँ,
तुम नई मारुति लगती हो, मैं स्कूटेर लंबरेटा हूँ,
इस कदर अगर हम चुप-चुप कर आपस मे प्रेम बढ़ाएँगे,
तो एक रोज़ तेरे डैडी अमरीश पुरी बन जाएँगे,
सब हड्डी पसली तोड़ मुझे भिजवा देंगे वो जेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम अरब देश की घोड़ी हो, मैं हूँ गदहे की नाल प्रिये,
तुम दीवाली का बोनस हो, मैं भूखो की हड़ताल प्रिये,
तुम हीरे जड़ी तश्तरी हो, मैं almuniam का थाल प्रिये,
तुम चिक्केन-सूप बिरयानी हो, मैं कंकड़ वाली दाल प्रिये,
तुम हिरण-चौकरी भरती हो, मैं हूँ कछुए की चाल प्रिये,
तुम चंदन वन की लकड़ी हो, मैं हूँ बबूल की छाल प्रिये,
मैं पके आम सा लटका हूँ, मत मारो मुझे गुलेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
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