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मैडिटेशन क्या है ? क्या यह ईशवर से जुड़ने का माध्यम है? नही !
अक्सर लोग ईश्वर भक्ति को मैडिटेशन से जोड़ कर देखते है. राम का नाम जपना या किसी और भगवान् का नाम जपना मैडिटेशन नही है.दुनिया में सबसे मतलबी इंसान होता है जो अपनी जरुरत के लिए ही सब कुछ करता है , भगवान् को याद भी हम तब ही करते है जब हमें कोई परेशानी होती है या हमारी ज़रूरते पूरी नहीँ होती .बुढ़ापे में स्वर्ग या मोक्ष का लालच ही हमें ईश्वर भक्ति की और जोड़ता है.
जरा सोचो कभी आपने टीवी सिरियल्स में या फिल्मो में देखा हो तो जिस भगवान् को हम याद करते है वो भगवान् खुद आँखे बंद करके किसको याद करते रहते है. क्या शिव् जी से ऊपर भी कोई और भगवान् है , क्या महात्मा बुद्ध सालो मैडिटेशन की मुद्रा में भगवान् को याद करते थे? क्या भगवान् आँखे बंद करके गॉड पार्टिकल को याद करते थे .
इसी वजह से कई और भ्रांतियां है मैडिटेशन की . जैसे की. . . सुनहरे सुहावने पलों को याद करना मैडिटेशन है?
कुछ लोग कहते है मन में अच्छे पलों को याद करना मैडिटेशन है .अच्छे पलों को याद करने के लिए दिमाग पर बड़ा जोर डालना पड़ता है क्योंकि हमारे जीवन में अच्छे पल कम और बुरे पल ज्यादा है. कभी दो मिनट ध्यान की मुद्रा में बैठ कर अच्छे पलों को याद करना .अच्छे पलों को छोड़ कर बाकी सारे काम याद आजायेंगे . किसी किसको उधार दिया है , किससे पैसे लेने ,किसको पैसे देने है , सब याद आ जाता है . फिर आप ध्यान छोड़ कर बहीखाता खोल कर बैठ जाते हो .
दरअसल सुनहरे पल या सुहावने पल याद नही किये जाते ,उन्हें जीया जाता है. यह जीवन है और इसमें कोई अच्छा ,बुरा पल नही है , हम इंसानों ने इसको बाँट दिया. जब हम खुश है तो अच्छा पल और दुःखी है तो बुरा .महात्मा बुद्ध का emptiness का यही एक उदाहरण है जिसमे उन्होंने बताया है कि जीवन में कोई पल अच्छा बुरा नही , सिर्फ एक पल है!!
तो मैडिटेशन क्या है?
दरअसल मैडिटेशन मौत के पल का वो एहसास है जो ईश्वर भक्ति से कही ऊपर है, मैडिटेशन में ना कोई अच्छा पल होता है और ना ही कोई बुरा पल. जीवन के अपार यह वो शून्य बिंदु है जहाँ कोई लोभ नही , कोई एहसास नही ,बस शून्यता है !!
इस संसार में मौत एक ऐसी चीज़ है जो सत्य है , एक न एक दिन मौत आनी ही है . और मौत के बाद मैडिटेशन है ,जहा ना स्वर्ग है न नरक है , न कोई भगवान् न कोई शैतान .
प्राचीन समय में जिसे हम देवता युग कहते है , उस समय में साधु कई सालों तक ध्यान की अवस्था में बैठे रहते थे . लोभ ,लालच , अच्छे , बुरे के अपार वो शून्यता की अवस्था में ध्यान में लीन रहते थे. जब तक आपका मन शांत नही है , तब तक आप कभी भी शून्यता की अवस्था में नही रह सकते !
यही मैडिटेशन है जो मौत के समीप है. म्रत्यु क्या है? दरअसल म्रत्यु के बाद कुछ नही है , शून्यता है सिर्फ. और यही मैडिटेशन है. किसी पर ध्यान न लगना  ही ध्यान (meditation)है.

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