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साल 2003 जब कल हो न हो सिनेमाघरों में आई, तब शायद अमेरिका जाना बहुत बड़ी बात मानी जाती थी. खेर बड़ी बात तो आज भी मानी जाती है, मगर उस दौर में हमें अमेरिका, स्विट्जरलैंड या कोई विदेशी लोकेशन देखने के किये सामान्यतः बॉलीवुड मूवीज देखनी पड़ती थी, जिसमे यश चोपड़ा जहाँ एक तरफ स्विट्जरलैंड की वादियां दिखाते तो करण जौहर अमेरिका से रूबरू करवा रहे थे. जबकि आज के समय मे भी अमेरिका जाना बड़ी बात है मगर आज इस इन्फॉर्मेशन के समय मे हम जहां अमेरिका जैसे देश के चुनाव के पल पल की वास्तविक खबर प्राप्त कर रहे है और पता नही क्यों, BIDEN की जीत की खुशियां मना रहे है।
Kal ho na ho फ़िल्म से एक बार फिर हम अमेरिका से रूबरू हुए. हमें लगता था कि अमेरिका ऐसा ही है जैसा फ़िल्म में दिखाया जा रहा है. जिसमे सब लोग खुश दिखाई पड़ते है, जिसमे सारे अंग्रेज ( ज्यादा चु चमाट नही, हमारे लिए हर गौरा अंग्रेज है ) हमारे हीरो अमन माथुर के साथ डाँस में चांस मारना चाहता है, जिसमे हम जैसे अपने देश मे भसड़ मचाते है वैसे ही वहाँ भी मचाये तो सब चिल रहेगा, जिसमे अमेरिकन कूल पीपल पता नही क्यो हिपहॉप वाला लुक ही रखते है, जिसमे अमेरिका में अगर कोई इंडियन रह रहा होगा तो बेशक वो पंजाबी ही होगा.
मगर 2003 में जब सिनेमाघरों में न देखकर DD NATIONAL पर हमनें यह फ़िल्म पहली बार देखी, तो शाहरुख में कैंसर होने के बावजूद और अपने क्रश को खुद से ही कुर्बान कर देने वाले इमोशन से हम सीधे जुड़ जाते थे, साथ ही सैफ अली खान के एक बार फिर डम्ब मगर स्मार्ट मगर मुख्य किरदार से कम स्मार्ट वाले किरदार से हम तब तक भी बोर नही हुए थे और प्रीति जिंटा तो आज भी उतनी ही प्रीटी है।
आज के दौर में कल हो ना हो देखना नोस्टाल्जिया में ले जाता है , जब हम 2003 से आज 2020 में आ गए तो समय के साथ साथ हम भी आगे बढ़े और अगर आज भी हम इस फ़िल्म के लिए वैसा ही महसूस करे जैसा 2003 में करते थे तो शायद समय तो आगे बढ़ गया मगर हमारा दिमाग नही. वो दूसरी बात हो कि आप srk के फैन हो और आप नही चाहते आज के दौर के उस समझदार की तरह बनना जो बॉलीवुड की पुरानी फिल्में देखकर उनमे कमियां निकालता है. शायद इस फ़िल्म को देखने का best एक्सपीरियंस भी यही है कि इस फ़िल्म से दिल लगाकर देखा जाए , क्योकि दिमाग लगा लिए तो आज के अमेरिका में जो कमियां है उससे हम इस फ़िल्म के अमेरिका से कभी relate नही कर पाएंगे।
मगर 2020 में इस फ़िल्म को जब आप देखना शुरू करते हो तो फ़िल्म के साथ साथ आपके जीवन का वो दौर भी आपके कॉन्सइंस में घूमता रहेगा. फिर आप बोलोगे " वो भी क्या दिन थे"
वो भी क्या दिन थे , जब हम जींद माही वे गाने पर डांस करते थे.
वो भी क्या दिन थे , जब हम प्रीटी वुमन गाने को कुड़ी घुमा गाते थे.
वो भी क्या दिन थे , जब कैसेट में इस फ़िल्म के गाने बजाए जाते थे.
वो भी क्या दिन थे, जब DD नेशनल पर रविवार की सुबह को रंगोली में एक बार तो शाहरुख का कल हो ना हो गाना दिखाई ही पड़ जाता था.
और जब शाहरुख फ़िल्म के अंत मे मर जाता है तो वो दिल धक धक वाली धुन आपके दिमाग मे चलती रहती थी और आपके दो चार दिन इसी सोच में चले जाते थे कि क्यो अमन माथुर मर गया , He was such a awesome Dude.

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