कविता
अरे हो जा रे unemployeed
एक बार फिर बेरोजगार हो जाने का करता है मन
फिर वही दोपहर की नींद लेने का करता है मन
अब फिर से उन बेफिक्र रातों में सोने का करता है मन
जहाँ आने वाले सुबह अलार्म से नही मम्मी की डांट से होती थी ,
अब वो दिन कहा जब जेब खाली रहती थी
मगर फिर भी दिन दोस्तों संग ऐश में गुजरता था
आज जेब में पैसा है मगर दोस्त नही
ज़िन्दगी में पैसा है मगर समय नही
वो बोरियत भी बड़ी खुशनसीब थी
जब मेरे पास उसके लिए समय था
अब तो यह कम्भख्त ज़िन्दगी ऐसी हो गयी
जहा ज़िन्दगी के लिए समय नही
मुश्किलों भरा समय था इसलिए अपनों की मुश्किलों में काम आते थे
अब तो अपनों से हाल पूछ लेना ही ईद ऐ चाँद हो गया
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