"मसान"फिल्म तो आप सबने देखि होगी ,उस फिल्म का गाना "तू किसी रेल सी गुजरती है मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ " आपने सुना होगा और बेशक पसंद भी आया होगा. इस गाने में दुष्यंत साहब की कविता के कुछ अंश जोड़े गए है .
मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ
एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ
तू किसी रेल-सी गुज़रती है
मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ
मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ
हर तरफ़ ऐतराज़ होता है
मैं अगर रौशनी में आता हूँ
मैं अगर रौशनी में आता हूँ
एक बाज़ू उखड़ गया जब से
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ
मैं तुझे भूलने की कोशिश में
आज कितने क़रीब पाता हूँ
कौन ये फ़ासला निभाएगा
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ
~ दुष्यंत कुमार
सिनेमा से जब किसी कवि के ख्यालातों वाली कविताएं जुड़ जाती है तो दोनों का मेल बहुत खूबसूरत गीत का निर्माण करते है ,इसी का एक उदहारण है मसान फिल्म का यह गाना .
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