इस हफ्ते कुछ ख़ास पढ़ने को नही है तो जॉर्ज ऑरवेल की animal farm ही पढ़ लो. कुछ खास से इसकी गुणवत्ता को कम मत आंकना. इस नावेल के पन्नो के कम होने के कारण कुछ ख़ास कहा गया है। कम पन्नो की मगर दमदार नावेल . जिसे आप एक रात में पढ़ सकते है ( क्योंकि मैंने पढ़ी है ), Animal farm कटाक्ष है सोसाइटी पर, जिसे आर्ट की भाषा मे Allegorical कहा जाता है .
ANIMAL FARM - GEORGE ORWELL'S Satire ( हिंदी रिव्यु )
एक रात एनिमल फार्म के सभी जानवर अपने मालिक मतलब इंसान प्रजाति के विरूद्ध विद्रोह छेड़ देते है और जानवरों पर होने वाले अत्याचार को रोकने और जानवरों को इंसानों के समान सम्मान देने की कवायद करने की कहानी है एनिमल फार्म.
कहने को यह साधारण और मनोरंजक कहानी है जो आज के जमाने मे इस premise के साथ कभी नावेल का रूप नही ले पाती. मगर उस वक़्त इस कहानी के पीछे गहरे अर्थ को समझाकर जॉर्ज ऑरवेल ने इसको दुनिया तक पहुँचाया , आज के समय मे भी इस प्रेमिस के पीछे के अर्थ को समझाकर आसानी से इसको पब्लिशर्स के दिमाग मे डाला जा सकता है क्योंकि यह कहानी ही ऐसी है.
जो जानवरो के विद्रोह के आड़ में अपने हक के लिए लड़ने का संदेश बड़े चुटीले स्वभाव में कह जाती है. एनिमल फार्म सन 1945 दूसरे विश्व युद्ध के दौर में प्रकाशित हुई थी, इसी कारण यह रूसी रेवेलुशन 1917 और stalinism पर तीखा वार करती है.
जो अक्सर नावेल पढ़ते है उनको ज्यादा परेशानी नही होगी मगर आज के समय मे किताबो से दूर होती जनरेशन के लिए यह अच्छी नावेल है , जिससे उनकी भी किताबे पढ़ने की अच्छी आदत लगेगी .
बाकी जॉर्ज ऑरवेल की 1984 पढ़ने के बाद उनके बारे में जानने , उनके काम को पढ़ने की उत्सुकता और बढ़ गयी ।।
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