Chopstick 2019 में आई नेटफ्लिक्स की हल्की फुल्की कॉमेडी मूवी है और यह इतनी हल्की मूवी है कि इस फ़िल्म में कई गहरे मुद्दों को दिखाकर यूँही हल्के में रफा दफा कर दिया . ऐसा लगा जैसे गेम ऑफ थ्रोन्स को जल्दबाजी में आठवें सीजन में खत्म करने के इरादे से कुछ भी लिख कर खत्म किया उसी तरह इस फ़िल्म को भी समय की पाबन्दी के कारण घाई घाई में लिखकर खत्म कर दिया गया हो ।
शायद शुरू किया गया होगा कि फ़िल्म को छोटा बजट मगर बड़े मुद्दों के बारे में बात करती हुई बनाया जाएगा मगर फ़िल्म जब अंत होती है तो लगता है जो जोश फ़िल्म के लेखक और निर्देशक सचिन यार्डी के शुरुआत में रहा होगा वो शायद बाद में fade away हो गया होगा. क्योकि जिस तरह फ़िल्म के शुरुआती रीलों में फ़िल्म में कई ऐसे विषय या फिर हाईलाइट पॉइंट थे जो फ़िल्म की मजबूत नीवं का काम कर सकते थे . कौन से है वो एक बार जान लेते है
फ़िल्म में एक दर्शय है जहां स्कूल में बच्चे बाल मजदूरी कर रहे है . जो वहाँ सिक्को को थैलियों में पैक करने का काम करते है मगर इस विषय को बाद में भूला दिया जबकि मुझे लग रहा था कि फ़िल्म की मुख्य किरदार निरमा जिसका कॉन्फिडेंस डाउन है वो इस बालमजदूरी जैसे मुद्दे पर कुछ कदम उठाएगी , जो शायद उसके आत्मविशवास प्राप्त करने की कड़ी में अहम रोल अदा करेगा . मगर ऐसा कुछ नही होता .
अजीब इसलिए क्योकि मेकर्स को यह समझ नही आया कि इस किरदार को किस दिशा में ले जाना है . आर्टिस्ट नाम के किरदार की एंट्री होती है किसी बिल्डिंग में फ्लैट में खाना बनाते हुए , जिसके बारे में सावधान किया जाता है कि बहुत गुस्से वाला है , जो अपने हेरोइसम स्टाइल में एक दर्शय में ट्रैफिक के बीच से एक नेता की रैली को हटाता है , जो तिजोरी या ताले तोड़ने जैसे चोरी के काम करता है , मगर फ़िल्म में कहीं भी उसका कोई खास गुस्सा नजर नही आता क्योकि ढीली राइटिंग के कारण ऐसा कोई दर्शय बन नही पाया , इस किरदार का नाम आर्टिस्ट क्यो है इसका भी कोई कारण नही बताया गया क्योकि अगर आप अपनी फिल्म के लीड हीरो के किरदार का नाम आर्टिस्ट रखते हो तो कुछ तो रेफरेन्स देना ही पड़ता है ना कि क्यो इसका नाम आर्टिस्ट है. जिस स्टाइल से वो ट्रैफिक से नेता की रैली को हटाता है वो स्टाइल फ़िल्म के महत्वपूर्ण स्थान क्लाइमेक्स में फुर हो जाती है, जो हेरोइसम वाली स्टाइल का पता नही और वो खुद ही डर के भाग रहा है जबकि हेरोइन खुद हीरो वाला काम करती है जब वो फ़िल्म के विलेन के घर पहुँच जाती है . फ़िल्म के एक दर्शय में वो फ़िल्म की हेरोइन निरमा को कुछ अजीब सा ही लाइफ का ज्ञान पढ़ाता है जो interstellar से भी कठिन लगता है समझने में . तो बात यह है कि ऐसे किरदार को कोई एक रास्ता नही दिया लगता है जैसे बिन पगडण्डी वाले जंगल मे छोड़ दिया गया हो जहां वो भटका हुआ सा है .
किसी का नाम निरमा हो तो भारत मे ज्यादातर लोगों को यह जोक याद आएगा वाशिंग पाउडर निरमा . तो इस फ़िल्म को कॉमेडी बनाने के लिए एक अवसर तो यही मिल गया कि किरदार का नाम निरमा रख दो एक दो जगह तो ऐसे ही कॉमेडी आ जायेगी . निरमा का किरदार आत्मविशवास कमी से झुझता हुआ दिखाया गया है जिसका आपको पता होता है कि अंत आते आते उसका कॉन्फिडेंस बढ़ जाएगा मगर इस हल्की फुल्की फ़िल्म में निरमा का किरदार बड़ी आसानी से कॉन्फिडेंस इनक्रीस कर लेता है . जबकि अगर राइटिंग में पकड़ होती तो परिस्थितियां भी मजबूत होती, ज्यादा चैलेंजिंग होती , जितना बड़ा चैलेंज उतना ज्यादा आत्मविश्वाश और शायद कॉमेडी सीन्स भी ज्यादा हो जाते मगर इन सब मे यह फैल हो जाती है
दिल्ली बैली , सात उचक्के , मेड इन हेवन , डेढ़ इश्कियां , दिल्ली 6 इन सबमें ये डॉन या ऐसा किरदार बनते आ रहे है जो एक जैसा लगता है जिसमे गली बॉय में निभाया इनका किरदार भी शामिल कर सकते है. कुछ और भी अलग से जोड़ा जा सकता था इनके किरदार के साथ .
पहले तो नेटफ्लिक्स वालो ने चूतिया काटा इस फ़िल्म की 96% रेटिंग दिखाकर जैसा वो ऐसा पहले भी कर चुके है जब उन्होंने Vernonica को सबसे डरावनी फ़िल्म बताकर प्रमोट किया . दूसरा यह कि यह फ़िल्म शुरुआत में बहुत प्रॉमिसिंग लगती है मगर जैसे जैसे आगे बढ़ती है खत्म ही हो जाती है . हँसाने वाले दर्शय ना के बराबर है , किरदारों से आप जुड़ नही पाते क्योकि फ़िल्म जल्दी खत्म हो जाती , क्लाइमेक्स भी बहुत कमजोर है क्योंकि फ़िल्म की शुरआत को देखकर क्लाइमेक्स से उम्मीदें बढ़ जाती है . यह फ़िल्म हल्की फुल्की फ़िल्म है जिसे आप एक बार देख सकते हो , क्योकि फ़िल्म ज्यादा लंबी नही है और जैसा कि फ़िल्म में कहा गया है हर चीज़ के दो ऑप्शन होते है तो आप यह फ़िल्म नेटफ्लिक्स पर देखोगे और यहां फिल्मे के ढेरों ऑप्शन है इसके अलावा .
#Chopstick #Review #Netflix
शायद शुरू किया गया होगा कि फ़िल्म को छोटा बजट मगर बड़े मुद्दों के बारे में बात करती हुई बनाया जाएगा मगर फ़िल्म जब अंत होती है तो लगता है जो जोश फ़िल्म के लेखक और निर्देशक सचिन यार्डी के शुरुआत में रहा होगा वो शायद बाद में fade away हो गया होगा. क्योकि जिस तरह फ़िल्म के शुरुआती रीलों में फ़िल्म में कई ऐसे विषय या फिर हाईलाइट पॉइंट थे जो फ़िल्म की मजबूत नीवं का काम कर सकते थे . कौन से है वो एक बार जान लेते है
1. बाल मजदूरी
फ़िल्म में एक दर्शय है जहां स्कूल में बच्चे बाल मजदूरी कर रहे है . जो वहाँ सिक्को को थैलियों में पैक करने का काम करते है मगर इस विषय को बाद में भूला दिया जबकि मुझे लग रहा था कि फ़िल्म की मुख्य किरदार निरमा जिसका कॉन्फिडेंस डाउन है वो इस बालमजदूरी जैसे मुद्दे पर कुछ कदम उठाएगी , जो शायद उसके आत्मविशवास प्राप्त करने की कड़ी में अहम रोल अदा करेगा . मगर ऐसा कुछ नही होता .
2. अभय देओल का अजीब सा किरदार " आर्टिस्ट "
अजीब इसलिए क्योकि मेकर्स को यह समझ नही आया कि इस किरदार को किस दिशा में ले जाना है . आर्टिस्ट नाम के किरदार की एंट्री होती है किसी बिल्डिंग में फ्लैट में खाना बनाते हुए , जिसके बारे में सावधान किया जाता है कि बहुत गुस्से वाला है , जो अपने हेरोइसम स्टाइल में एक दर्शय में ट्रैफिक के बीच से एक नेता की रैली को हटाता है , जो तिजोरी या ताले तोड़ने जैसे चोरी के काम करता है , मगर फ़िल्म में कहीं भी उसका कोई खास गुस्सा नजर नही आता क्योकि ढीली राइटिंग के कारण ऐसा कोई दर्शय बन नही पाया , इस किरदार का नाम आर्टिस्ट क्यो है इसका भी कोई कारण नही बताया गया क्योकि अगर आप अपनी फिल्म के लीड हीरो के किरदार का नाम आर्टिस्ट रखते हो तो कुछ तो रेफरेन्स देना ही पड़ता है ना कि क्यो इसका नाम आर्टिस्ट है. जिस स्टाइल से वो ट्रैफिक से नेता की रैली को हटाता है वो स्टाइल फ़िल्म के महत्वपूर्ण स्थान क्लाइमेक्स में फुर हो जाती है, जो हेरोइसम वाली स्टाइल का पता नही और वो खुद ही डर के भाग रहा है जबकि हेरोइन खुद हीरो वाला काम करती है जब वो फ़िल्म के विलेन के घर पहुँच जाती है . फ़िल्म के एक दर्शय में वो फ़िल्म की हेरोइन निरमा को कुछ अजीब सा ही लाइफ का ज्ञान पढ़ाता है जो interstellar से भी कठिन लगता है समझने में . तो बात यह है कि ऐसे किरदार को कोई एक रास्ता नही दिया लगता है जैसे बिन पगडण्डी वाले जंगल मे छोड़ दिया गया हो जहां वो भटका हुआ सा है .
3. फ़िल्म की हीरोइन " निरमा "
किसी का नाम निरमा हो तो भारत मे ज्यादातर लोगों को यह जोक याद आएगा वाशिंग पाउडर निरमा . तो इस फ़िल्म को कॉमेडी बनाने के लिए एक अवसर तो यही मिल गया कि किरदार का नाम निरमा रख दो एक दो जगह तो ऐसे ही कॉमेडी आ जायेगी . निरमा का किरदार आत्मविशवास कमी से झुझता हुआ दिखाया गया है जिसका आपको पता होता है कि अंत आते आते उसका कॉन्फिडेंस बढ़ जाएगा मगर इस हल्की फुल्की फ़िल्म में निरमा का किरदार बड़ी आसानी से कॉन्फिडेंस इनक्रीस कर लेता है . जबकि अगर राइटिंग में पकड़ होती तो परिस्थितियां भी मजबूत होती, ज्यादा चैलेंजिंग होती , जितना बड़ा चैलेंज उतना ज्यादा आत्मविश्वाश और शायद कॉमेडी सीन्स भी ज्यादा हो जाते मगर इन सब मे यह फैल हो जाती है
4. विजय राज हर बार की तरह बेहतरीन लगे है मगर हर बार की तरह ही डॉन बने है
दिल्ली बैली , सात उचक्के , मेड इन हेवन , डेढ़ इश्कियां , दिल्ली 6 इन सबमें ये डॉन या ऐसा किरदार बनते आ रहे है जो एक जैसा लगता है जिसमे गली बॉय में निभाया इनका किरदार भी शामिल कर सकते है. कुछ और भी अलग से जोड़ा जा सकता था इनके किरदार के साथ .
5. कैसी है फ़िल्म ?
पहले तो नेटफ्लिक्स वालो ने चूतिया काटा इस फ़िल्म की 96% रेटिंग दिखाकर जैसा वो ऐसा पहले भी कर चुके है जब उन्होंने Vernonica को सबसे डरावनी फ़िल्म बताकर प्रमोट किया . दूसरा यह कि यह फ़िल्म शुरुआत में बहुत प्रॉमिसिंग लगती है मगर जैसे जैसे आगे बढ़ती है खत्म ही हो जाती है . हँसाने वाले दर्शय ना के बराबर है , किरदारों से आप जुड़ नही पाते क्योकि फ़िल्म जल्दी खत्म हो जाती , क्लाइमेक्स भी बहुत कमजोर है क्योंकि फ़िल्म की शुरआत को देखकर क्लाइमेक्स से उम्मीदें बढ़ जाती है . यह फ़िल्म हल्की फुल्की फ़िल्म है जिसे आप एक बार देख सकते हो , क्योकि फ़िल्म ज्यादा लंबी नही है और जैसा कि फ़िल्म में कहा गया है हर चीज़ के दो ऑप्शन होते है तो आप यह फ़िल्म नेटफ्लिक्स पर देखोगे और यहां फिल्मे के ढेरों ऑप्शन है इसके अलावा .
#Chopstick #Review #Netflix
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