मेरी ज़िन्दगी का इतिहास जो गुजर चुका है मगर उसके पन्नो में छुपी वो यादें अभी भी ताज़ा है । इंसान मरने के बाद शायद भूत बनता होगा मालूम नही , मगर पल जो बीत जाते है वो भूत काल जरूर बन जाते है।
इन्ही यादों के वृक्ष से गुजरे जमाने का फल तोड़ लाया हूं जिसे हम शहतूत कहते थे । शायद अभी भी यह कहते होंगे पता नही , क्योकि अब न वो पेड़ दिखाई देता है और न वो फल ।।
वेसे तो आज के दौर में वृक्ष ही नही बचे , जो बचे है वो भी इश्तिहारों से लबरेज है । यह आधुनिक जमाना है अब पेड़ पर फल नही विज्ञापन मिलते है । वृक्ष तो अभी भी छाया देते है मगर अब ज़िन्दगी बंद दरवाज़ों में सिमट कर रह गयी , जहाँ न सुर्यदेव का दर्शन है क्योकि अब नींद खुलती है सुबह दस बजे और जहाँ न सूर्यास्त है जहाँ बड़ी बड़ी इमारतों का कारवां है जहाँ न पार कुछ दिखाई देता है ।।
शहतूत का पेड़ मुझे ले गया उस बचपन मे , जब रविवार को सवेरे आंख खुद ही खुल जाया करती थी , न जाने क्यों शायद इसलिए कि रविवार की कीमत हमे पता होती थी , यह एक दिन हम खुल कर जी लेना चाहते थे , ( असली खुशी तो शनिवार की थी , रविवार तो जल्दी निकल जाता था ) , रविवार वो दिन था जब सवेरे कदम उस पेड़ की ओर निकल पड़ते थे जहाँ उसके मालिक से पहले हम पहुँच कर उस शहतूत का मजा लेना चाहते थे ।।
शहतूत का वो पेड़ जिस पर छोटी चींटियों का भी एक कारवां चल रहा होता , जो शहतूत के रस की इस लड़ाई में हम से भीड़ जाया करती , खूब काटती ,आखिर हम हार जाया करते ।।
मगर वो शहतूत जो हाथ मे आता तो लगता जैसे थानोस को इंफिनिटी पावर मिल गयी , चीनी जैसी मिठास होती तो वो शहतूत अपनी इंडिविजुअल पर्सनालिटी कैसे बताता ,इसलिए न पूरी तरह वो मीठा होता , थोड़ा हल्का सा खटास जीप से लग कर स्वाद का वो पैगाम देता जिसका हमे पूरे हफ्ते इन्तेजार रहता।।
शहतूत फल की सबसे बड़ी खासियत यह है कि शायद ही कुछ लोगो ने इसे खरीद कर खाया होगा । कही पेड़ पर लटक कर या किसी ने दे दिया होगा जब ही खाया होगा ।
उस वृक्ष को मैं ढूंढ रहा हु , क्योकि इस globalisation में कई जानवरो की प्रजातियां , कई संस्कृतिया , कई वृक्ष , कई फल - फूल विलुप्त हो रहे है , और जो सबसे तेजी से गायब हो रही है वो है " इंसानियत " , इस आधुनिक दौर में हम ज्यादा भरोसेमंद हो रहे है मशीनों पर । गर्मी लगी नही की Ac चालू कर दिए , भूख लगी नही की फ्रीज़ में रखा खाना गर्म कर लिए ओवन में ।।
मशीनों की तरह कोई एहसास नही बचे है , दिनचर्या जैसे मशीनी समय पर उठना ,समय पर खाना ,और समय पर सोना , सरल होना जरूरी है ।।
चलो इस सरलता की दौड़ में खोज लाते है वो पेड़ , शहतूत का जिसका स्वाद आज की पीढ़ी में गायब हो रहा है , क्या पता शायद कॉम्पलिमेंट में उस पेड़ का वो खूंखार मालिक भी मिल जाये ।।
#खोईछाँव #शहतूतकापेड़
इन्ही यादों के वृक्ष से गुजरे जमाने का फल तोड़ लाया हूं जिसे हम शहतूत कहते थे । शायद अभी भी यह कहते होंगे पता नही , क्योकि अब न वो पेड़ दिखाई देता है और न वो फल ।।
# शहतूत का पेड़
वेसे तो आज के दौर में वृक्ष ही नही बचे , जो बचे है वो भी इश्तिहारों से लबरेज है । यह आधुनिक जमाना है अब पेड़ पर फल नही विज्ञापन मिलते है । वृक्ष तो अभी भी छाया देते है मगर अब ज़िन्दगी बंद दरवाज़ों में सिमट कर रह गयी , जहाँ न सुर्यदेव का दर्शन है क्योकि अब नींद खुलती है सुबह दस बजे और जहाँ न सूर्यास्त है जहाँ बड़ी बड़ी इमारतों का कारवां है जहाँ न पार कुछ दिखाई देता है ।।
शहतूत का पेड़ मुझे ले गया उस बचपन मे , जब रविवार को सवेरे आंख खुद ही खुल जाया करती थी , न जाने क्यों शायद इसलिए कि रविवार की कीमत हमे पता होती थी , यह एक दिन हम खुल कर जी लेना चाहते थे , ( असली खुशी तो शनिवार की थी , रविवार तो जल्दी निकल जाता था ) , रविवार वो दिन था जब सवेरे कदम उस पेड़ की ओर निकल पड़ते थे जहाँ उसके मालिक से पहले हम पहुँच कर उस शहतूत का मजा लेना चाहते थे ।।
शहतूत का वो पेड़ जिस पर छोटी चींटियों का भी एक कारवां चल रहा होता , जो शहतूत के रस की इस लड़ाई में हम से भीड़ जाया करती , खूब काटती ,आखिर हम हार जाया करते ।।
मगर वो शहतूत जो हाथ मे आता तो लगता जैसे थानोस को इंफिनिटी पावर मिल गयी , चीनी जैसी मिठास होती तो वो शहतूत अपनी इंडिविजुअल पर्सनालिटी कैसे बताता ,इसलिए न पूरी तरह वो मीठा होता , थोड़ा हल्का सा खटास जीप से लग कर स्वाद का वो पैगाम देता जिसका हमे पूरे हफ्ते इन्तेजार रहता।।
शहतूत फल की सबसे बड़ी खासियत यह है कि शायद ही कुछ लोगो ने इसे खरीद कर खाया होगा । कही पेड़ पर लटक कर या किसी ने दे दिया होगा जब ही खाया होगा ।
उस वृक्ष को मैं ढूंढ रहा हु , क्योकि इस globalisation में कई जानवरो की प्रजातियां , कई संस्कृतिया , कई वृक्ष , कई फल - फूल विलुप्त हो रहे है , और जो सबसे तेजी से गायब हो रही है वो है " इंसानियत " , इस आधुनिक दौर में हम ज्यादा भरोसेमंद हो रहे है मशीनों पर । गर्मी लगी नही की Ac चालू कर दिए , भूख लगी नही की फ्रीज़ में रखा खाना गर्म कर लिए ओवन में ।।
मशीनों की तरह कोई एहसास नही बचे है , दिनचर्या जैसे मशीनी समय पर उठना ,समय पर खाना ,और समय पर सोना , सरल होना जरूरी है ।।
चलो इस सरलता की दौड़ में खोज लाते है वो पेड़ , शहतूत का जिसका स्वाद आज की पीढ़ी में गायब हो रहा है , क्या पता शायद कॉम्पलिमेंट में उस पेड़ का वो खूंखार मालिक भी मिल जाये ।।
#खोईछाँव #शहतूतकापेड़
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