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दिल थोड़ा रुआंसा हुआ कि सोच कर की क्या ज़िन्दगी को यूँ पूरा होना जरूरी है कि उनको हम से अलग कर दिया


कादर खान साहब का वो दूल्हे राजा में निभाया " के के सिंघानिया " का किरदार आज भी याद आते ही चेहरे पर हँसी ले आता है . बेशक यह किरदार कलाकारी और पुरस्कारों के नजरिये से उम्दा नही बोला जाता होगा , शायद इसलिए कि हमारे बॉलीवुड में कॉमेडी को सीरियसली नही लिया जाता ; मगर आज भी के के सिंघानिया और राजा ( गोविंदा का किरदार ) के बीच वो जुगलबंदी हँसी ला ही देती है ।

यह मेरा उनके निभाए किरदारों में से सबसे पसंदीदा किरदार है . गोविंदा और कादर खान की यही जुगलबंदी कई और फिल्मो में थी जैसे राजाबाबू का वो खुदगर्ज बाप जो बेटे को सही राह का रास्ता दिखाता है , या कुली नंबर वन का वो कंजूस घमंडी होशियार चंद जो गरीबों से बात करना अपना अपमान समझता है ; या फिर आंटी नंबर वन का राय बहादुर जो आंटी के प्रेम में पागल हो जाता है ।।

इनके अलावा भी कई और किरदार है कादर खान साहब के जो हमारा ध्यान मुख्य किरदारों से खींच अपनी ओर मोड़ लेते है .

आज कादर खान साहब की मृत्यु की खबर सुनकर मैं उस बचपन की यादों में पहुचं गया जब उनके किरदारों वाली फिल्में देखा करता था और उनमें निभाये उनके किरदार याद आ गये ।।

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