On Black : हमे आवाज़ सुनाई देती है किसी महिला न्यूज़ एंकर की .बुलंद आत्मविश्वाश से भरी आवाज़ जब टीवी से वास्तविक दुनिया में प्रवेश करती है So As usual मध्यम वर्गीय परिवारों की तरह सिर्फ मर्दो की हँसी ठहाके बातचीत करती आवाज़े सुनाई देने लगती है .बतिया रहे होते है अपनी नई महिला बॉस के कारनामो के बारे में . सोफे पर बैठे भाईसाहब अपने मित्रों के साथ बड़ी बड़ी बुद्धिजीवियों वाली बातें कर रहे है और शेफाली शाह ( दिल धड़कने दो मैं अनिल कपूर की पत्नी) पैरों के पंजों के बल पर बैठी उनकी झूठन भरी प्लेट समेट रही है.
"मसान" फिल्म के निर्देशक नीरज घ्यावान की शार्ट फिल्म "JUICE" का पहला ही दर्शय हमे संकेत दे देता है कि एक और फेमिनिज्म पर फिल्म.मगर आप इतना सोचते उससे पहले यह फिल्म आपको एक बार फिर एहसास दिलाती है कि जब जब आपके मन में यह (patriarchy)
पुरुष प्रधान वाला कीड़ा फिर से जीवित हो उठेगा तब तब एक और नयी फिल्म आपको आपकी औकात याद दिलाने आ जायेगी .
पुरुष प्रधान वाला कीड़ा फिर से जीवित हो उठेगा तब तब एक और नयी फिल्म आपको आपकी औकात याद दिलाने आ जायेगी .
घर के एक हिस्सा जहा मस्त कूलर ठंडक दे रहा है तो दूसरा हिस्सा जो बेवजह महिलाओं का पसंदीदा बना दिया गया है रसोई धुंआ धुंआ से लबरेज़ है , महिलाएं पसीने में लतपत जैसे उनका जनम ही हुआ है उनके मर्दो को खाना खिलाना , खाना बनाये जा रही है . मगर मजाल कोई जाकर उन मर्दो से सवाल कर सके की आखिर ये जो तुम्हारे अधिकार है वो हमारे क्यों नही .
नीरज घ्यावान की इस फिल्म का एक एक दर्शय हमारी उस नस को पल पल दबोचता है जो patriarchy को सपोर्ट करती है.छोटे बच्चे अपने कमरे में खेल रहे है मगर उनमें से सिर्फ छोटी लड़की को ही क्यों खाना परोसने के लिए कहा जाता है .
यह फिल्म आपको अंदर से झकझोर देती है ,आपको सोचने पर मजबूर कर देती है और जो आप शुरू से सोच रहे होते हो आखिर जूस नाम क्यों है फिल्म का , उसके जवाब वाला दर्शय बिना कुछ शब्दों के बहुत कुछ कह जाता है .
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